mai beti hu..

माँ के हाथ की रोटी याद है.

पापा के साथ की मस्ती याद है.

वो ठंडी ठिठुरति रातों में, एक रज़ाई की गरमाई याद है।
आज इन यादो की मुझसे जुदाई हो गयी,
लोग कहते हैं , मैं बेटी हुँ , मैं तो परायी हो गयी।
बचपन में सुना था मैंने, लड़का लड़की एक समान।
फिर किसी ने कहा लड़की ही बढाती है अभिमान।
धीरे धीरे ये बातें भी अनजान हो गयी ,
लोग कहते हैं , मैं बेटी हु , मैं तो परायी हो गयी।
माँ ने कहा था , इस घर से उस घर ही तो जाना है ,
ये तो बस रिश्तो का छोटा सा तानाबाना है।
फिर क्यों सबके आसुओ के साथ मेरी बिदाई हो गयी।
क्या लोग सही थे  ?? मैं बेटी हु , मैं तो परायी हो गयी।
जब नए घर में मैं आयी तो ,
कुछ नए रिश्तो ने जन्म लिया।
मैं बीवी बहु और माँ बनी ,
जीवन ने रुख मोड़ लिया।
फिर भी एक वो रिश्ता , बरबस याद मुझे आता है ,
मेरे अनसुलझे सवालो का जवाब , माँ के आँचल में मिल जाता है।
वो घर मेरा अस्तित्व था , ये घर मेरा भविष्य है।
फिर क्यों समाज की इस रीत से मेरी रुसवायी हो गयी।
क्यों लोग  कहते हैं , मैं बेटी हूँ , मैं तो परायी हो गयी।
बेटियां  ही माँ की सहेली और पिता का मान हैं।
मायके का सुख और ससुराल की शान हैं।
रिश्तो को सहेज कर रखना ,हमें अच्छे से आता है ,
माँ-बेटी या बहु-बहन का सुख हम ही से भाता है।
माना कि अपनों के बीच से मेरी जुदाई हो गयी।
पर ये कभी ना कहना ,,
मैं बेटी हूँ , मैं तो परायी हो गयी।
                                                                                        भूमिका भंडारी अग्रवाल
                                                                                                 हल्दवानी।

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