आम तौर पर ऐसा माना जाता है कि मई और जून में सर्वाधिक गर्मी पड़ती है।

आम तौर पर ऐसा माना जाता है कि मई और जून में सर्वाधिक गर्मी पड़ती है।लेकिन बीते कुछ वर्षो से अप्रैल बीतते-बीतते ही भीषण गर्मी पड़ने लग जा रही है।इस बार तो अभी आधा अप्रैल भी नहीं बीता है कि गर्मी अपना रिकॉर्ड तोड्ने पर लगई हुई है। रोज़-रोज समाचार पत्रों में एक ही बात निकलती है, कि शहर कंक्रीट के जंगलो में तब्दील होता जा रहा है, शहर से हरियाली गायब होती जा रही है। ये सब पढ़-पढ़ कर मुझे तो बहुत गुस्सा आता है अरे यार केवल बुराई निकालने से बात नहीं बनने वाली। क्या सिर्फ आम आदमी ने सब चीजो का ठेका ले रखा है? एक आम नागरिक ही गर्मी को कम करने या फिर शहर को हर-भरा बनाने में अपना योगदान दे सकता है? जब भी देश में दैवीय आपदा आती है या फिर बाढ़ सूखा आम नागरिको से अपील कि जाती है कि आप तन, मन,धन से अपना योगदान दे कर अमुक इलाके के पीड़ित वक्तियों की मदद करिये। कोई ये पूछने वाला या बताने वाला नहीं रहता कि आम आदमी अपनी आय में से इतना टैक्स रोजाना भरता है वो कहाँ जाता है। ठीक उसी तरह जब सरकारी महकमे की मिली भगत से   अंधाधुंध पेड़ काटे जाते हैं या फिर खेती की जमीन को किसान मजबूरी वश बेच देता है तो इसमें आम आदमी का क्या योगदान है।क्यों नहीं पेड़ काटने वालो पर कड़ी करवाई की जाती है? क्यों नहीं ऐसे उपाय किये जाते कि किसानो को खेती की जमीन न बेचनी पड़े। एक आम आदमी बेचारा मेहनत कर के कमाए, टैक्स भरे, दैवीय आपदा में देश के लिए योगदान करे, अपने शहर को हर-भरा भी रखने में मदद करे।गंगा जी का पानी गन्दा हो रहा है, उसको साफ रखने के लिए अपनी धार्मिक मान्यताये बदल दे, गैस की सब्सिडी छोड़ दें,अपने गली मोहल्ले और शहर को साफ़ रखे,भले ही कूड़ा उठे या न उठे।   उसके बदले में आला अफसर, नामी गिरामी लोग,राजनीतिक पार्टियों के उच्च पदों पर असींन लोग ऐशो आराम की जंदगी जियें, मजे काटे,भाषण बाजी करे, भारत माता की जय के नारे लगाएं, ये कहाँ का इंसाफ है भाई।

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