आज हिंदी के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है – हमारी गुलाम मानसिकता | हम आज भी हिंदी में बोलने को अज्ञान और पिछड़ेपन का प्रतीक मानते है| इसके विपरीत जो व्यक्ति फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता है उसे विद्वान समझा जाता है| युवाओं के बीच तो हिन्दी जैसे गुम सी होती जा रही है। आज के युवा मानते हैं कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है और हमें इसे बोलना चाहिए, पर अच्छा करियर बनाने के लिए और बेहतर नौकरी के लिए अंग्रेजी का प्रयोग हमारी मजबूरी बन गया है।
जिस देश में पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक कभी हिन्दी का ही बोलबाला रहा हो वहां आज इस भाषा को अपने अस्तित्व के लिए जूझना पड़ रहा है। ब्रिटिश सरकार ने अपनी कूटनीति के तहत भारत पर अंग्रेजी भाषा थोपी थी और हमारी भाषा संस्कृति पर सुनियोजित ढंग से प्रहार किया। इसका असर यह हुआ कि अंग्रेजी शासक की भाषा बनी और हिन्दी को गुलामी का दर्जा मिला जो कि आज तक जारी है। शासकीय कामकाज में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने का आदेश तो दिया जाता है, लेकिन इसका परिपत्र भी अंग्रेजी में लिखा जाता है। अंग्रेजी भाषा आज इतनी भारी हो गई है कि घर में छोटा बच्चा जब ट्विंकल-ट्विंकल लिटिल स्टार की कविता सुनाता है तो सीना गर्व से फूल जाता है। पहले प्राथमिक कक्षा में हिन्दी की बारहखड़ी सिखाई जाती थी। इससे मात्राओं और शुद्ध उच्चारण का ज्ञान होता था। अब बच्चों में हिन्दी भाषा का ज्ञान औपचारिकता तक सिमट गया है।
इन सब हालातों को देखते हुए हिंदी भाषा के अस्तित्व पर आने वाले भविष्य में संकट के बादल नज़र आ रहे है| अगर शहरो में हिंदी भाषा को इसी तरह असाक्षरता का प्रतीक माना जाता रहा, तो भविष्य में आने वाली पीढ़ी के लिए हिंदी भाषा मात्र किताबों में सिमटकर रह जाएगी| आम- बोलचाल के लिए भी शायद ही हिंदी भाषा का इस्तेमाल हो| हमारी भाषा के भविष्य को बचाने के लिए हमे खुद ही कदम आगे बढ़ाने होंगे| ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी को हिंदी भाषा सिर्फ भूतकाल में ही न नज़र आए| अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ बच्चो को हिंदी का भी ज्ञान देना जरूरी हैं|