रकक्षन्दा: कर्म का फल

कहते है हम जो भी कर्म करते है उसका  फल हमे  जरुर मिलता है,  हम अच्छा करते है तो अच्छा फल और बुरा करे तो बुरा फल मिलता है, पर ये कहानी सुनने के बाद इस तर्क से कुछ हट कर जानने को मिलेगा.

एक ऐसा मुहल्ला जहां सिर्फ मिडिल क्लास  लोग रहते थे वहां अभी नया सा एक घर बना था जिसकी बनावट गली के सभी घरो से ज्यादा खूबसूरत थी. अब तक लोग इस घर को ताड़ते थे लेकिन गुप्ता फैमिली जबसे वहां रहने लगी तब सोने पे सुहागा होगया क्योकि गुप्ता परिवार बाकी लोगो को देखते  थोड़ा अलग सा था,  परिवार मे गुप्ता जी, उनकी पत्नी रकक्षन्दा  और उनके दो बच्चे 17 वर्षीय संदीप और 13 साल की खूबसूरत बेटी प्रिया. परिवार का स्वागत तो मुहल्ले वालो ने भली प्रकार से किया .
मिसेज गुप्ता  का  पहनावा चर्चा का विषय रहता था आखिरकार  जहां सबकी मम्मियां साड़ी या सलवार सूट पहनती थी
वह़ीं रकक्षन्दा आंटी की जींस और स्लीवलेस टॉप कंट्रोवर्सियल रहता था.
मिस्टर गुप्ता का छत पर एक्सरसाइज करने का स्टाइल बच्चे खूब कॉपी करते थे आखिरकार मिस्टर गुप्ता का रहन सहन व आदते वहां के मिडिल क्लास अंकलो जैसी नही थी.
एक दिन बात है एक बुजुर्ग आदमी जिसका हुलिया भिखारियो जैसा था पर वो भिखारी नही था,  वह काफी देर तक गुप्ता जी के घर की डोरबेल बजाता रहा पर किसी ने दरवाजा नही खोला, उस  बुजुर्ग व्यक्ति पर दया करके एक पड़ोसन ने उसे बैठने के लिये कुर्सी देदी वह कुर्सी पर बैठ गया.बहुत देर बाद संदीप बाहर आया और उसने उस व्यक्ति से कुछ देर बात की इसके बाद वह चला गया, संदीप से बात करने के बाद वह व्यक्ति वहां से चला गया.
ये देख कर तो यही अंदाज लगाया गया कि शायद यह बुजुर्ग व्यक्ति गुप्ता परिवार का बहुत करीबी है शायद संदीप और प्रिया का सगा दादा या नाना भी होसकता है पर एक बुजुर्ग व्यक्ति का इस तरह अपमान तो कोई नही करता पता नही कैसे लोग है? खैर रात गई बात गई ये सोच पड़ोसियो ने भी कोई सवाल नही किया. एक दिन गुप्ता परिवार के घर से चीखने और तोड़फोड़ की आवाज आरही थी, सभी आवाजे सुन कर बाहर निकल आये जिस तरह से आवाज  आ रही थी ऐसा लग रहा था जैसे मिस्टर गुप्ता रकक्षन्दा आंटी को पीट रहे थे, अचानक सीढ़ियो से गिरने की आवाजे आई, और दरवाजा खुला तो  गली के सभी पुरुष अपनी रकक्षन्दा भाभी को बचाने के लिये दौड़ पड़े पर अचानक रुक गये पीछे से आरही महिलाये भी रुक गई क्योकि
नजारा कल्पना से परे था.
गुप्ता जी जमीन मे फैले पड़े थे वही रकक्षन्दा और संदीप गुप्ता जी को पीट रहे थे वही प्रिया सहमी हुई दूर खड़ी थी दबी हुई आवाज मे संदीप और रकक्षन्दा  से कह रही थी
‘प्लीज़ पापा के साथ ऐसा मत करो’
पर आखिरकार रकक्षन्दा ने
‘चल बुढ्ढे  निकल मेरे घर से’ कह कर गुप्ता जी जो घर से निकाल कर दरवाजा बन्द कर लिया. गुप्ता जी लोगो की तरफ बिना देखे वहां से जल्द से जल्द  निकल जाना चाहते थे पर लोगो ने उनकी खराब हालत का हवाला देकर उन्हे रोक लिया उन्हे पानी पिलाया तब जाकर गुप्ता जी ने
अपनी आखिरकार अपनी जुबान खोली,
उन्होने बताया कि वे अपने बीवी बच्चो के साथ एक खुशनुमा जिन्दगी जी रहे थे. एक दिन उनकी पत्नी की मुलाकात  गांव से  आई हुई 25  साल की एक दुखियारी युवती से हुई जिसका 5 साल का बेटा भी था, उनकी पत्नी ने उस युवती को अपने घर रख लिया.
वह बहुत मन लगा कर काम करती थी, गुप्ता जी और
पूरे परिवार का ध्यान रखने लगी थी इस नाते घर की सारी चीजे ऐसे इस्तेमाल करने लगी जैसे सब कुछ उसी का हो,
वह काम करते करते अपनी कहानी सूनाती रहती थी कि उसकी शादी जबरन
दुगनी उम्र के व्यक्ति करा गई थी.
वह व्यक्ति उसे पीटता था. वे उसकी कहानी सुनने मे इंट्रेस्ट लेने लगे थे कब उन्हे उस युवती से प्यार होगया पता ही नही चला. उन्होने उस युवती से शादी करने के लिये अपनी बीवी को तलाक  दे देदिया हांलाकि उनके जवान बेटे उनसे बहुत नाराज हुये  और आखिरकार उन्होने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया
शादी के बाद उस युवती का नाम रकक्षन्दा  रख दिया, उसे गवांर से
शहर की मैम बना दिया. रकक्षन्दा की हर ख्वाहिश पूरी करते थे सौतेले बेटे संदीप को सगे बेटे से भी ज्यादा चाहा और फिर
प्यारी सी बेटी का प्रिया का जन्म हुआ. तब तक सब ठीक चल रहा था पर न जाने कैसे रकक्षन्दा के शौक बढ़ते चले गये जिनके लिये वह अंधाधुंध पैसे खर्च करती चली गई और उसके प्यार मे पागल गुप्ता ने अपना सबकुछ रकक्षन्दा के नाम कर दिया इसी बीच उनकी मुलाकात एक व्यक्ति से हुई जिसने खुद को रकक्षन्दा का पति बताया और कहा कि  वह गांव मे जमीदार था और रकक्षन्दा ने उसे अपना दुखड़ा रोकर उसे अपने प्रेम पाश मे फंसा लिया और  वह दूसरी बीवी के तौर पर उसके साथ रहती थी, अचानक उसे शहर की हवा लग गई और शहर मे घर
लेके परिवार से अलग रहना चाहती थी जब उन्होने उसकी ये जिद नही पूरी की तो दीवाली एक रात उसने गुस्से मे आकर घर मे आग लगा दी जिसमे उस उस व्यक्ति का  सब कुछ  बरबाद हो गया और रकक्षन्दा उनके बेटे संदीप को लेकर शहर भाग आई
. ये बात सुन कर  भी गप्ता जी ने उस व्यक्ति का यकीन नही किया लेकिन वही हुआ जिस बात से उस व्यक्ति ने गुप्ता जी को डराया था.
अब जब उनके पास कुछ नही है देने को तो रकक्षन्दा ने उन्हे बेईजत करके घर से निकाल दिया. पड़ोसियो को ये समझते देर नही लगी कि उस दिन जो बूढ़ा व्यक्ति संदीप से बाते कर रहा था वह संदीप का पिता  एवं रकक्षन्दा का पहला पति था.
अपनी कहानी बयां करने के बाद
गुप्ता जी वहां से चले गये.
लेकिन पड़ोसियो का रवैया रकक्षन्दा के प्रति बदल गया. अब गली के हर व्यक्ति ( बूढ़ा, जवान और छोटा बच्चा) के लिये वह अब सिर्फ रकक्षन्दा थी.
रकक्षन्दा की बेटी प्रिया बहुत अच्छे व्यवहार और आचरण की थी इसलिये कुछ पड़ोसियो के मन मे प्रिया के प्रति हमदर्दी की  भावना थी. अचानक लोगो का ध्यान एक और बात पर गया कि रकक्षन्दा एक अधेड़ रईस आदमी के साथ घूम फिर रही थी वह व्यक्ति शर्मा जी की मौजूदगी मे भी घर आता जाता था पर अब आना जाना कुछ ज्यादा होगया था. लोग इससे पहले कुछ अन्दाजा लगाते कि  एक दिन  एक बड़ी सी कार रकक्षन्दा के मकान के सामने रुकी, कार से संदीप निकला और उसने डोर बेल बजाई तो प्रिया ने दरवाजा खोला, कार से वही व्यक्ति निकला फिर अन्त मे सबका मुंह खुला का खुला रह गया जब दुल्हन के लिबास मे एक स्त्री निकली जो कि रकक्षन्दा थी अब किसी को कोई शक नही था वह सफेद मूछ और काले बाल वाला स्टाइलिश अधेड़
प्रिया और संदीप के नया पापा था.
रकक्षन्दा का ये नया पति घर मे स्थाई रुप से नही रहता था पर सबका खर्च उसी ने उठा रखा था. साल बीतते रहे प्रिया घर मे अकेली तन्हा सी रहती थी संदीप बुरी तरह बिगड़ा हुआ था वह चेन स्नेचिंग और चोरी करते हुये पकड़ा गया तो एक रईस व्यक्ति की मदद से किसी तरह रकक्षन्दा ने संदीप को छुड़ाया.
वैलेंटाइन डे के दिन 48 साल की रकक्षन्दा  के लिये एक व्यक्ति बुके पे बुके  भिजवाये जारहा था शाम हुई तो वो खुद
बुके लेकर रकक्षन्दा के दरवाजे पर आकर खड़ा होगया ये वही रईस व्यक्ति था जिसने संदीप को जेल से छुड़ाने मे रकक्षन्दा की मदद की थी.
पड़ोसियो ने भी  रकक्षन्दा के नये  पति को देख कर कानाफूसी करते हुये बड़ी मौज ली. प्रिया की शादी एक गुड लुकिंग एन. आर. आई. लड़के से फिक्स होगई थी और ये खबर फैल गई कि फलां महीने की फलां तारिख को प्रिया यहां से बहुत दूर चली जायेगी महीना आया तारीख भी आई पर न तो प्रिया की शादी हुई और न ही प्रिया को घर से मुक्ति मिली जो
प्रिया को नर्क जैसा लगता था, शादी पर सवाल किये जाने पर प्रिया ने हल्की मुस्कुराहट के साथ  जवाब दिया कि शादी कैंसिल होगई क्योकि लड़के वाले दहेज ज्यादा मांग रहे थे इसलिये  उसने शादी से मना कर दिया पर सच्चाई ये थी कि रकक्षन्दा की सच्चाई लड़के वालो को पता चल चुकी थी,  जो लड़का प्रिया की खूबसूरती और सादगी पर फिदा था उसने महज ये कह कर इंगेजमेंट तोड़ दी कि जब मां का चालचलन ऐसा है तो  बेटी का कैसा होगा?
ये बात रकक्षन्दा को बहुत खराब लगी रकक्षन्दा ने अपनी बेटी प्रिया को सामान्य जिन्दगी देने के लिये मिडिल क्लास लड़के तक देखना  शुरु कर दिया पर कोई भी तैयार नही हुआ एक तरफ प्रिया की शादी नही हो रही थी तो दूसरी तरफ संदीप के कारनामो की वजह से पुलिस का घर के चक्कर लगाने से रकक्षन्दा परेशान रहने लगी थी तभी कुछ पड़ोसी  भी रकक्षन्दा को मुहल्ला छोड़ कर जाने पर मजबूर करने के लिये बात-बात पर झगड़ते थे एक बार तो  कई पड़ोसी एक तरफ होगये और रकक्षन्दा को पीटने और मुंह पर कालिख पोतने की कोशिश की.
लेकिन अचानक एक नये सख्स की एंट्री हुई जिसने रकक्षन्दा को इस विपदा से बचाया उसके साथ उसके गार्ड्स थे साथ मे पुलिस कमिश्नर, इतना देखने के बाद किसी की हिम्मत नही हुई रकक्षन्दा से कुछ भी कहने की.
फिर वो काला सा भीमकाय अधेड़ व्यक्ति
लगभग रोज घर आने लगा और रकक्षन्दा उसके साथ घूमने फिरने लगी
प्रिया अभी भी घर मे अकेली बालकनी के रेलिंग मे गुमसुम सी लटकी रहती थी,
शायद उसे ये सब अच्छा नही लगता था.
लोग अब बस रकक्षन्दा की नई शादी का ही इंतजार कर ही रहे थे कि वो दिन आ गया जब गाड़ी घर के सामने रुकी पहले संदीप निकला फिर दूल्हे के लिबाज मे वह अधेड़ निकला पर ये क्या रकक्षन्दा निकली पर उसका लिबाज दुल्हन वाला नही था बल्कि उसके साथ एक दुल्हन निकली, वो नई दुल्हन कोई और नही बल्कि प्रिया थी. ये सब देख कर लोग अवाक रह गये. शादी के बाद न तो प्रिया के पहनावे और लुक मे कोई बदलाव नही आया था पर उसके व्यवहार मे बदलाव जरूर आगया था, हमेशा सभी को देख कर मुस्कुराकर बात करने वाली प्रिया अब  किसी की तरफ देखती तक नही थी, शायद वो डरती थी कि कही कोई उससे शादी से सम्बंधित सवाल न पूछ बैठे.
फिर भी किसी करीबी पड़ोसन  ने  बहुत कोशिश की तब प्रिया ने बताया कि जब लोग उसकी मां के मुंह पर कालिख पोत रहे थे तो वह अपनी अस्मिता को लेकर बहुत डर गई थी तब वह तलाकशुदा उस आई. ए.एस अधिकारी ने जिस तरह मदद की वह उसे उस वक्त खुदा का फरिश्ता लगा पर फरिश्ते के भेष मे वह एक र‍ाक्षस था उसने अपनी पहली पत्नी को तलाक सिर्फ इसलिये दिया था क्योकि दो बेटियो को जन्म दिया था पर उसे बेटा चाहिये था पर दो बच्चो को जन्म देने बाद तीसरे बच्चे के लिये वह राजी नही थी.

पहले रकक्षन्दा उस व्यक्ति से शादी करने वाली थी पर उसने प्रिया
से शादी करने का प्रस्ताव रख दिया तो उसके अहसानो के तले दबी रकक्षन्दा उसे मना नही कर पाई और उसने प्रिया को  ये कहकर
‘थोड़ा उम्र दराज है तो क्या? पर पैसे वाला तो है’
शादी करने के लिये मन‍ा लिया. प्रिया ने यह भी कहा कि वह अपनी मां से नफरत करती है. आखिरकार प्रिया उस अधेड़ के साथ वो शहर छोड़ कर चली गई. कई साल बाद  प्रिया से सम्बंधित  इतनी खबर मिली कि प्रिया ने फिर चौथी बेटी को जन्म दिया  है.
बुढ़ाती रकक्षन्दा ने एक अमीर बुढ्ढे के साथ
पर्मानेंट शादी करली थी और वह शहर छोड़ कर चली गई,  संदीप का जेल जाना और फिर छूटना आम बात होगई थी.
रकक्षन्दा कल भी खुश थी और आज भी पर खुद को खुश करने लिये रकक्षन्दा ने जो आग अपने जीवन मे लगाई उसमे मासूम प्रिया को बुरी तरह झुलसना पड़ा.
सच है कभी कभी हमारे बुरे करमो का फल हम नही भुगतते बल्कि हमारी सन्ताने भुगतती है वही अच्छे कर्म का फल हमे मिले या न मिले पर संताने उसका उपभोग अवश्य करती है.

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