बीते हुए दिनों की वो,महक कभी आ जाती है.
एक धुंदली सी तस्वीर , आँखों पे छा जाती है.
वो छोटी छोटी डांट, और उसके बाद दुलार.
वो मेरे अनसुलझे सवालों पे, लुटाना मुझपे प्यार.
उस एक हर लम्हे की, याद बरबस आ जाती है.
बीते हुए दिनों की वो, महक कभी आ जाती है
ये मीठी यादें अब तो, झूठे सपने जैसी लगती हैं.
जब उस भयानक रात की, लपटे आने लगती हैं.
अब तो हार चढ़ी तस्वीरों मे ही,आपसे मिलना होता है.
मेरे सवालो के जवाब न मिलने पे, दिल जोरो से रोता है.
वो जुडती हुई कड़ियाँ , फिर से टूट जाती हैं.
बीते हुए दिनों को वो, महक कभी आ जाती है.
मेरे पापा श्री दीप कुमार भंडारी को समर्पित.