चलते फिरते लोग हैं,इस दुनिया के पत्थर|
दूजे का जो गम है, उनके लिए है पत्थर|
अपने लिए है जीते वो और अपना समा बनाए|
उनका ये ख़याल है खुद के लिए वो जी जाएँ|ऐसे ही एक इंसान की हम तुमको बात बताएँ|कोमल उसका दिल था,सबके गम में वो मिल जाएँ|
समझे सबको ,करे वो परवाह,
दूजे को समझाए|
राहें जो होती विकट, तो सबको रहें संभाले|
हर कोई उसको समझे,प्यार करे और माने|
जीवन लक्ष्य बनाया उसने,आगे बढ़ना चाहा|
मिला वो उसको,जो भी उसने चाहा था वो पाया|
भाग्य खुले और पैसा उस पर झूम-झूम कर बरसा|
चकाचौंध इस दुनिया में,फिर उसका दिल भी भटका|
जो कोमल दिल था,धीरे-धीरे चटका|
जितने थे उसके हम-साथी,उसने सबको छोड़ा|
कहे वो छोटे प्राणी सबको,उनके साथ ना मुझको होना|
कलियुग की इस दुनिया में,जो जितना ऊँचा जाए|
पत्थर ही पत्थर वो धीरे-धीरे बनता जाए|
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धन्यवाद मिश्रा जी, मैंने हमारी वाणी पे ब्लॉग सबमिट तो कर दिया है|उनकी टीम समय लेगी शायद|आप अपने ब्लॉग वहाँ पे भी पोस्ट करते हैं क्या?
Very Good Poem