कोमल- पत्थर

चलते फिरते लोग हैं,इस दुनिया के पत्थर|

दूजे का जो गम है, उनके लिए है पत्थर|

अपने लिए है जीते वो और अपना समा बनाए|


उनका ये ख़याल है खुद के लिए वो जी जाएँ|ऐसे ही एक इंसान की हम तुमको बात बताएँ|कोमल उसका दिल था,सबके गम में वो मिल जाएँ|

समझे सबको ,करे वो परवाह,

दूजे को समझाए|

राहें जो होती विकट, तो सबको रहें संभाले|

हर कोई उसको समझे,प्यार करे और माने|

जीवन लक्ष्य बनाया उसने,आगे बढ़ना चाहा|

मिला वो उसको,जो भी उसने चाहा था वो पाया|

भाग्य खुले और पैसा उस पर झूम-झूम कर बरसा|

चकाचौंध इस दुनिया में,फिर उसका दिल भी भटका|

जो कोमल दिल था,धीरे-धीरे चटका|

जितने थे उसके हम-साथी,उसने सबको छोड़ा|

कहे वो छोटे प्राणी सबको,उनके साथ ना मुझको होना|

कलियुग की इस दुनिया में,जो जितना ऊँचा जाए|

पत्थर ही पत्थर वो धीरे-धीरे बनता जाए|

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3 Replies to “कोमल- पत्थर”

    1. धन्यवाद मिश्रा जी, मैंने हमारी वाणी पे ब्लॉग सबमिट तो कर दिया है|उनकी टीम समय लेगी शायद|आप अपने ब्लॉग वहाँ पे भी पोस्ट करते हैं क्या?

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