अभी कुछ दिन पहले की ही बात है मैं एक दुकान पर अपना सामान ले रही थी कि तभी मैंने सुना कि दुकानदार एक लड़के को डांट रहा था वह दुकानदार बार बार एक ही बात कहे जा रहा था
‘जानते हो ना सिक्के कोई लेता नहीं है फिर भी तुमने मुझे ढेर सारे सिक्के थमा दिए, दस दस के सिक्के कौन लेगा बताओ’
तभी बीच में मैंने उसकी बात काट दी क्योंकि ये सब बातें मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी मैंने कहा
‘आप जानते हो आप जो भी कर रहे हो यह देशद्रोह के जैसा है आप जैसे असजग लोगो की मूर्खता वजह से देश का बुरा हाल है’
मेरी बात सनकर दुकानदार उल्टा मुझसे ही लड़ने लगा फिर मैंने उसे समझाया कि भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार एक से 10 रुपये के सिक्के का लेन देन मान्य है
और ऐसे मे सिक्को को लेकर आनाकानी करने वालो पर पुलिस कार्यवाही कर रही है इसलिये अपने अधिकार को समझिये इसे बर्दाश्त न करे. अभी हाल ही मे एक महिला द्वारा 5 रुपये के सिक्के एक सब्जीवाले ने अस्वीकार कर दिये उस महिला ने अपने अधिकार की रक्षा करने के लिये पुलिस को फोन कर दिया और पुलिस ने तुरन्त आकर उस सब्जी वाले पर कार्य वाही की ऐसा देख कर कई दुकानदार इस कानून और अपने अधिकार से परिचित हुये और सभी की आंखे खुली कि सिक्के न लेने वाले खिलाफ भारतीय मुद्रा अधिनियम के तहत कार्यवाही की जायेगी और भारतीय मुद्रा के अपमान के जुर्म मे जेल भी होगी.
अमूमन लोग सिक्के अस्वीकार किये जाने पर चुप होकर नोट थमा देते है
और दूसरो के द्वारा दिये सिक्को को सख्ती से अस्वीकार देते थे.
वाकई इस समस्या को हल्के मे ले लेना हमारी गलती रही जिसका भुगतान पूरे देश ने भुगता.
सच है बढ़ती महंगाई क्या कम थी जो सिक्कों का सितम कोई सहे, माना हम कई वजहो (मंहगाई, जातिवाद पर आधारित आरक्षण, बेरोजगारी आदि) से भारत की सरकार से संतुष्ट नही होपारहे है पर ये बहुत बड़ा सच है कि लागातार सरकार द्वारा हमे सजग बनाने की कोशिश की जारही है.
छोटे शहर -बड़े शहर तो छोड़ो गांव मे ये अफवाह समस्या बन के घर कर गई जिसका मुख्य कारण बैंक कर्मियो द्वारा सिक्के अस्वीकार करना, इस पर लोगो को लगा कि जरुर अब इन सिक्को का चलन खत्म होगया है या खत्म होने वाला है.
ये समस्या इस गहरी होगई कि इन पर कानून लागू हो जाने पर भी लोग बिलकुल भी सचेत नहीं हो रहे हैं वे अभी भी सिक्कों को लेकर झगड़ रहे हैं एक जमाना था जब हम एक एक रुपये जोड़ कर न जाने क्या क्या खरीद लेते थे न जाने कितने सपने देख डालते थे पर आज एक क्या दस रुपये के सिक्क को हीन भावना से देखे जारहे है वाकई महंगाई तो आम आदमी झेल ही रहा है पर ऐसे मे यह सिक्कों को बेकार समझते हुये लेन देन न करने मे शर्माना अपने पैर मे कुल्हाड़ी मारने जैसा है .
जब पहली बार मुझसे किसी ने सिक्के लेने से इनकार किया तो पहले मैने यही सोचा कि जब पचास, सौ और हजार के पुराने नोट बन्द हो सकते है तो अब कुछ भी होसकता है पर सिक्को को चुपचाप छिपा कर या जमा करके (जैसे गुजरे जमाने की मुद्रा) के रखने के बजाय मैने जानकारी हासिल करनी जरुरी समझी.
कौशाम्बी के विधायक संजय गुप्ता ने बैंको द्वारा की गई ऐसी हरकतो को भारतीय मुद्रा का अपमान बताया और किसी भी बैंक कर्मचारी द्वारा सिक्के न लेने पर उसका वीडियो भेजने वाले को 5000 का पुरुस्कार देने की घोषणा की
साथ ही उस बैंक कर्मचारी पर कार्यवाही करने का आश्वासन दिया.
सच है जब भारतीय रिजर्व बैंक ने खुद ये साफ किया है की. एक से 10 के सिक्के हर तरह से मान्य है
एक टर्न ओवर पर 1000 रुपये (10-10 के सिक्के) जमा किये जा सकते है एक दिन मे 3 या 4 टर्न ओवर किये जासकते है.
दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश के नागरिक इस विषय मे बिल्कुल भी सचेत नही होरहे बल्कि सिक्को का अपमान कर रहे है.
माना कि देश मे लोग मंहगाई और बेरोजगारी की समस्या से परेशान है पर किसी भी समस्या का का ठीकरा पूरी तरह सरकार पर फोड़ने से पहले हमे अपना भी आत्मवलोकन कर लेना चाहिये कि हम देश के प्रति कितने जिम्मेदार और सजग नागरिक है ये सिक्को की समस्या हमारी सजगता की सबसे बड़ी परीक्षा थी जिसमे ज्यादातर नागरिक फेल हुये है.
उपयोगी post है एवं ज्ञानवर्धक बी gudluck बधाई
बहुत अच्छा सामयिक और जानकारी से परिपूर्ण लेख,
धन्यवाद!
मैं आदित्य कर्ण।
मैंने अभी अभी, ब्लॉग के बारे में जाना है, ओर पहला ब्लॉग आप का पढने का मौका मिला। बहुत ही अच्छा लिखी हो, हाँ मैं भी लिखने का शौकीन हूँ, और सामाजिक समस्याओं पर लिखने में मेरा भी कुछ अधिक रुचि है, आशावादी हूँ कि आप का मार्गदर्शन मिलता रहेगा। धन्यवाद