खिलजी बनाम पदमावती

पदमावती की कहानी को लेकर लोगो मे एक ही सवाल है कि उनकी कहानी सच है या नही जिसका कारण है  ‘पदमावती’ नाम की फिल्म बना रहे फिल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली को बहुत बवालो का सामना करना पड़ रहा है कभी उनकी पिटाई करने की कोशिश की गई तो कभी फिल्म के सेट पर आग लगा दी गई,  कारण सिर्फ ये बताया जारहा है कि लोगो को सिनेमाघरो तक खींचने के लिये  वे इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर रहे है. जैसा कि हम सबने छात्र जीवन मे मलिक मलिक मुहम्मद जायसी की अनुपम रचना पदमावत के बारे मे पढ़ा है.ये पदमावत रानी पदमावती पर ही आधारित है.
हिन्दु स्त्री हो या मुसल्मान जब भी युध्द होता था जिस पक्ष की हार होती थी (राजा के मर जाने के पश्चात) उस पक्ष कि ज्यादातर स्त्रियां (बेगमे या रानियां) आत्महत्या का रास्ता अपनाती थी ताकि उन्हे जीते हुये शासक के हाथ की कठपुतली न बनना पड़े. लेकिन पदमावती नाम की वीर  राजपूतानी ने इस क्रिया को अलग तरीके से कई पेश करते हुऐ कई स्त्रियो के साथ सामूहिक आत्महत्या की जिसे जौहर का नाम दिया गया.  इसके बाद से  ये प्रथा बनती गई. धीरे धीरे वीर राजपूतानियां  पतियो के मर जाने पर उनकी अर्थी पर शोक मनाने के बजाय जौहर प्रथा के नाम पर  उनकी चिता पर बैठ कर जल कर मर जाती थी बाद मे यही प्रथा कुप्रथा मे बदल गई जब पति के मर जाने पर स्त्रियो को लोग बलपूर्वक चिता मे  बैठा कर जिन्दा जलाने लगे, इस कुप्रथा को सती प्रथा कहा गया जिसका अन्त करने का श्रेय राजा राम मोहन राय और लॉर्ड विलियम बेंटिक को जाता है.

पदमावती का विवाह  मेवाड़ के राणा रतन सिंह के साथ हुआ था.
वही अलाउद्दीन खिलजी खिलजी वंश का दूसरा संस्थापक था खिलजी वंश का पहला संस्थापक  उसका  चाचा  जलालुद्दीन खिलजी था जिसने अपनी बेटी से उसका निकाह करवाके राज्य की जिम्मेदारियां उस पर सौप दी थी, अलाउद्दीन पर  अपनी पत्नी (चचेरी बहन) के कत्ल का इल्जाम लगा लेकिन जलालुद्दीन ने उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नही कि क्योकि वह अलाउद्दीन पर बहुत विश्वास करता था. अलाउद्ददीन के अनुसार उसकी बेटी अलाउद्दीन पर हुकूमत कायम रखना चाहती थी और जब  उसने दूसरी शादी की तो वह बौखला गई और अपनी सौतन पर हमला बोल दिया तब उसे बचाने के लिये अलाउद्दीन ने उसका कत्ल कर दिया था. फिर भी वह जलालुद्दीन का चहीता बन चुका था लेकिन अलाउद्दीन ने  इन्ही बातो का फायदा उठाया  और वर्ष 1296 मे जलालुद्दीन  को गले लगाने के बहाने छूरा घोप कर उसकी हत्या कर दी और स्वयं गद्दी पर बैठ गया. इसके बाद उसे खुद पर इतना गुरूर होगया कि जो भी चाहता था उसे हासिल करने के लिये किसी भी हद तक चला जाता था, माना जाता है कि जब उसने पदमावती की खूबसूरती के चर्चे सुने तो तो वह रानी की एक झलक देखने को आतुर हो उठा बहुत प्रार्थना के बाद आखिरकार शीशे के जरिये उसने रानी की सूरत देखी (इस घटना के सत्य होने पर संदेह है) तो वासना मे इस कदर अंधा हुआ कि  राणा रतन सिंह को पहले बंदी बनाया और राजा के बदले रानी की मांग की पर रानी ने समझदारी दिखाते हुऐ उसका प्रस्ताव स्वीकार करने का नाटक किया और राजा रतन सिंह को उसकी कैद से आजाद करा लिया, पालकी मे पदमावती को न पाकर अलाउद्दीन खिलजी इस कदर कुपित हुआ कि उसने राज्य मे चढ़ाई करदी दुर्भाग्यवश राणा रतन सिंह युध्द मे वीरगति को प्राप्त हुआ. उसकी मौत के बाद अलाउद्दीन को लगा कि रानी पदमावती को हासिल कर लेगा.
अलाउद्दीन इससे पहले कि पदमावती तक पहुंचता, पदमावती ने महल  की 1600 स्त्रियो के साथ आत्मदाह (जौहर) करके खिलजी का घमन्ड चूर चूर कर दिया.

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6 Replies to “खिलजी बनाम पदमावती”

  1. पदमावती की शख्सियत को लेकर लोगों में मतभेद है, पर ऐतिहसिक रूप से स्त्री अस्मिता पर आँच न आने देने बाली राजपरिवार की रानी का जौहर एक मिसाल है ।
    सुंदर रचना ।

  2. बहुत बढ़िया जानकारी अर्पिताजी आपका लेख बहुत अच्छा है।

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