पिछले एपिसोड (२) से आगे:
शीतल: तुम वो हो न जो….
लड़का: नही मइडम हम कोई वो ये नही है , मेरा नाम संस्कार है हम कक्षा 10 मे पढ़ते है शीतल के नजदीक जाता है और झट से पैर छू लेता है और जाकर एक लड़के को हटा कर उसकी जगह पर बैठ जाता है, वह छात्र पीछे बैठ जाता है, पहले शीतल को अजीब लगता है फिर उसे समझ आता है कि उसने एक छात्र होने के नाते अपने अध्यापक के पैर छुये.
शीतल: खुश… खुश रहो!
संस्कार: मइडम खुश रहने का आशिर्वाद मत दो नही तो आपको ही दिक्कत होजायेगी .
शीतल: क्या मतलब?
पढ़ने वाला लड़का- भास्कर (क्लास -10th): (संस्कार की तरफ घूरते हुये फिर शीतल की तरफ मुस्कुराकर देखते हुये) मैडम आपने जो सवाल बताया उसका उत्तर आगया.
शीतल उसकी कॉपी देखने मे लग जाती है है और फिर वह
मे नजर घुमा कर देखती है कि क्लास मे एक भी लड़की नही है)
शीतल: आज पूरे बच्चे नही आये लगता है, लड़कियां तो एक भी नही आई है?
ये सुन कर सब हंसने लगते है
दिवाकर: मैम! लड़कियां मैथ कहां पड़ती है लड़कियां तो वो
झाडु़ पोछा, चूल्हा चौका वाली साइंस पढ़ती है.
शीतल: (गुस्से मे) होम साइंस को झाड़ू पोछा वाली साइंस कहते हो, शर्म नही अाती .
ज्ञान: मैडम! कक्षा आठ मे जिन लड़कियो को मैथ नही अच्छी लगती थी उनको 9th मे आकर मैथ से छुटकारा मिल गया पर हमने क्या पाप किया था? कि हमे दसवी तक मैथ के साथ सिर फोड़ना पड़ेगा.
शीतल: क्या कर सकते है? पर क्या तुम होम साइंस पढ़ सकते हो?
ज्ञान: बिल्कुल नही ! (दांत निकाल कर मुस्कुरा देता है).
शीतल: फिर मैथ तो पढ़नी पड़ेगी.
( सोचती है कि वैसे बात तो गलत नही कर रहा है gender equality वाली सोच के इस बदलते हुये जमाने मे स्टेट बोर्ड मे अगर लड़की को आठवी के बाद मैथ छोड़ने का अधिकार है तो लड़के को क्यो नही? या दोनो के लिये दसवी तक मैथ कम्पलसरी होजानी चाहिये और होम साइंस सिर्फ लड़कियो के लिये क्यो?
तभी लंच ब्रेक होने की घंटी की धुन सुनाई देती है
शीतल उठ कर क्लास से बाहर निकल जाती है, जैसे ही वह बाहर जाती है
संस्कार: (शीतल को जाते हुये देखते हुये) अबे यार! हमको नही मालूम था कि हम कल जिस लड़की को छेड़ रहे थे वो अपनी टीचर निकलेगी, वैसे अपनी मइडम दिवाली मे पटाखा नही फोड़ती होगी.
भास्कर: क्यो?
संस्कार: कैसे फोड़ेगी? मइडम खुद ही पटाखा है.
शीतल स्कूल मे टहलते टहलते एक क्लास मे पहुंचती है
जहां एक टीचर बहुत छोटे बच्चो के साथ बैठी हुई, उसका परिचय शीतल से आशा नाम की एक शादीशुदा महिला के तौर पर होता है ,
आशा: चुक्कु! (डांट ते हुये) कितनी बार कहा है कि इतना बड़ा कौर मत खाया करो! (उठ कर पीठ मे एक धीमे से एक घूसा रख देती है, बच्चे के मुंह का बड़ा कौर आखिकार गले से होते हुये पेट तक पहुंच जाता है) ,नालायक!
शीतल: इतने छोटे छोटे बच्चे है इनको डांटना -मारना सही नही.
आशा: (मुस्कुराते हुये) बिल्कुल सही कहा आपने हम टीचर को यही सिखाया जाता है पर अभी देखना..
(प्यार से एक बच्चे को देखती है) नकुल! मेरे पास आओ बेटा! मैडम को आपका लंच बॉक्स चेक करना है.
बच्चा उसकी नही सुनता अपना लंच बॉक्स छुिपा लेता है.
आशा: (बिना मुस्कुराये) आजाओ बेटा! टीचर का कहना मानना चाहिये न.
बच्चा फिर इग्नोर कर देता है.
आशा: (खीज कर आंख दिखाते हुये खड़ी होकर) नकुल आरहे हो या नही ?
बच्चा अपना लंच बॉक्स लेकर भागते हुये आता है.
शीतल: (अजीब महसूस करते हुये) बगल वाले क्लास रुम मे किस क्लास के बच्चे बैठे है?
आशा: 2nd to 5th
शीतल: Excuse me!
उठ कर चली जाती है
वहां देखती है कि बच्चे लंच कर रहे है शीतल वहां जाती है और बच्चो के बीच बैठ जाती है
शीतल: बच्चो क्या पढ़ा आपने?
एक प्यारी बच्ची: कम्प्यूटर.
शीतल: स्कूल मे कितने कम्प्यूटर है?
दूसरा बच्चा: एक कम्प्यूटर है.
शीतल: (सोचती है कि थैंक गॉड कम से कम एक कम्प्यूटर तो है) कहां पर है?
बच्चा: अरे आपने देखा नही वो है कम्प्यूटर .
शीतल देखती तो उसका मुंह खुला का खुला रह जाता है और वह धारावाहिक की बहु की तरह दोनो हाथ कानो पर लगा लेती है (धारावाहिक वाली पॉपुलर धुन दुम दुम ताना ताना देरे दुम -2 महसूस होती है) क्योकि
दरसअल एक कलंडर टंगा हुआ है जिसमे एक कम्प्यूटर की चित्र है, तभी पीछे से एक पुरुष की आवाज सुनाई पड़ती है
“क्यो शोर मचा रहे हो लंच खत्म होगया है”
तभी सभी बच्चे शान्त हो कर अचानक खड़े हो जाते है
बच्चे: (एक सुर मे) गुड मॉर्निंग मैडम!
मैडम सुन कर शीतल चौंक कर मुड़ कर देखती है तो पाती है कि साड़ी पहने हुये एक लम्बी चौड़ी अधेड़ महिला खड़ी हुई है.
महिला: ( बच्चो को बैठने का इशारा किये बिना) पहले ये बताओ ! ये पैर गन्दा करके कौन स्कूल आया है ? पैर के निशान इसी क्लास तक बने है.
पता है! आज ही सर जी ने पूरा घर धोया है और आज ही छी छा लेदर मच गई.
इतना कहते ही वह सीआइडी ऑफीसर की तरह सभी बच्चो के जूते चेक करने लगती है, शीतल अन्दर ही अन्दर घबरा रही है कि कही उसका पैर तो गन्दगी मे पड़ गया पर उसने सोचा पर टीचर के चप्पल नही देखे जायेंगे शायद.
एक चालाक बच्चा- बादल (क्लास 4th) : मैडम! (शीतल की तरफ इशारा करते हुये) ये निशान किसी बड़े के लगते है हम बच्चो के पैर के नही लगते.
महिला- चुप रहो! जब कोई भी बच्चा नही निकलेगा तो टीचर के ही चप्पल चेक होंगे.
ये सुन के शीतल की रुह कांप गई वह अचानक भगवान से अपनी लाज बचाने की प्रार्थना करने लगी कि तभी आखिरी मे एक बच्चे के जूते मे गन्दगी का कुछ अंश पाया गया, उसी मैचिंग के आधार पर उसी बच्चे से वो निशान साफ करवाये गये.
शीतल : (सोचती है) थैंक गॉड ! मुझे तो डर लग रहा था कि ये बुढ़िया कही मुझसे गन्दगी न साफ करवाये.
महिला: मैडम शीतल! आपको 7th और 8th को भी मैथ पढ़ानी है.
शीतल जाती है एक नये रुम मे जाती है देखती है कि 7th 8th की लड़कियां एक दूसरे का मेक अप कर रही है
साथ मे 9th-10th की भी लड़किया भी है जो कुछ लिख रही है.
आखिर कार शीतल का किसी तरह वहां समय पार होता है और वह बद्रीनाथ उसे ऑफिस बुलाता है पर वहां वह देखती है वह अधेड़ स्त्री बद्रीनाथ को कुछ खिलाना चाहती है
बद्रीनाथ: नही खाना है कह दिया न! ज्यादा बड़ी अम्मा न बनो! , लवर लवर करने को कह दो बस.
वह महिला चुप होकर बगल वाली कुर्सी मे बैठ जाती है शीतल को ये समझते देर नही लगती कि वह महिला बद्रीनाथ की पत्नी है.
बद्रीनाथ: मैडम! कैसा लगा आपको हमारे स्कूल मे पढ़ाकर?
शीतल: जी बहुत अच्छा (एक गाना सोचती है दइया ये मै कहा आ फसी रोना आवे न आवे हंसी) , मै चलती हूं सर है हेव अ ग्रेट डे!
लेकिन बद्रीनाथ शीतल के पीछे बाहर आते है
बद्रीनाथ: शीतल! तुम मेरी बेटी जैसी हो इसलिये कोई भी समस्या हो मुझसे जरुर व्यक्त करना…
शीतल: (मुड़ कर भावुक मुंखमुद्रा ) सर … सर … वो
(फिर अचानक मुंह टेढ़ा कर) 1500 रुपये सैलरी बहुत कम नही है.
बद्रीनाथ: (हिचकिचाते हुये) ये समस्या छोड़ कर कोई भी समस्या बेझिझक व्यक्त कर सकती हो , बेटा! बहुत लकी हो आप जो यहां पढ़ाने का सौभाग्य मिला है अब तक जितने भी शिक्षको ने यहां पढ़ाया वे बहुत अच्छे से ट्रेन्ड होकर गये.
शीतल: (सोचती है हां पढ़ाने के अलावा पॉट्टी साफ करने की भी ट्रेनिंग दी होगी आपने, अरे बुढ्ंऊ! भगवान से डरो) ओके सर.
शीतल बाहर निकलती है बाहर स्कूटी पर बैठी रोली के पीछे बैठ कर चली जाती है.
बद्रीनाथ और उनकी मिसेज उसे तब तक देखते है जब तक वह आंख से ओझल नही होजाती है,
निर्मला: एक जमाना था जब हमारा स्कूल मे टीचर्स और स्टुडेंट्स की भीड़ से भरा रहता था पर जब से ये इंगलिश मीडियम स्कुलो की भीड़ बढ़ गई , तबसे उस भीड़ मे हमारा स्कूल कही गुम होगया, शुक्र है ये झोपड़पट्टी वाला एरिया हमारे स्कूल के नजदीक है जिसकी वजह स्कूल अभी तक चल रहा है हमारा, अगर हम भी अच्छे से स्कूल की मरम्मत करवाके कुछ बदलाव करते तो..
देखो न! ये लड़की कितना नाक भौ सिकोड़ रही थी.
हमे नही लगता ये लड़की अब कल से आयेगी क्योकि….
बद्रीनाथ: जब तक हम जिन्दा है हमारा स्कूल चलता रहेगा हमे कुछ बदलने की जरूरत नही.
चलो ! देखते है!
to be continued