.आज के इस दौर मे स्त्रिया पुरुषो के वर्चस्व वाले क्षेत्रो मे अपना लोहा मनवा रही है
लेकिन ना केवल दाकियानूसी सोच के पुरुष बल्कि पुराने खयालो कि माहिलाये भी उनके बढते कदमो मे बाधक है | बेेशक इस बात मे कोई शक नही है कि माहिलाओ कि अपेक्षा पुरुषो मे अधिक ताकत होती है किन्तु इसका ये मतलब बिलकुल नही है कि एक लडकी वो नही कर सकती जो एक लडका कर सकता है .बलकि सम्भव ये भी है कि वो एक लडके ज्यादा बेहतर करे .क्योकि मानसिक रुप से व लडको से ज्यादा मजबूत होती है .भारत एक पुरुष प्रधान देश कहा जाता है जिसका मुख्य कारण ये नही है कि यहा के पुरुषो मे महिलाओ से ज्यादा काबिलियत है बल्कि
असल बात ये है कि वे अपने छोटे से छोटे कार्य को इतना बडा कर के बताते है तो दूसरी
तरफ महिलाओ द्वारा किये कार्यो को तुच्छ ही करार देते है या यू कहे कि पुरुष कही न कही इस बात से डरते है कि औरते अगर पुरुषो के भी कार्य भी करने लगी तो उनका अस्तित्व खतरे मे पड सकता है. भारत मे लगभग हर पति अपनी हाउस वाइफ पत्नी से एक ही सवाल करता है कि ‘ सारा दिन घर मे बैठे बैठे क्या करती रहती हो ‘? २८ वर्षिय नेहा पान्डे कहती है कि उनके अपने दोस्तो पति घण्टो बाते करते है इस पर जब वे एतराज जताती है तो बिजिनेस मीटिन्ग कह कर चुप करादेते है वही नेहा अगर किसी से ज्यादा देर तक
बाते करती है तो वे उसे व्यर्थ की पन्चायत करार देते है .
आमतौर पर कुछ स्त्रिया खुद को पुरुषो से कम समझ कर अपना आत्मविश्वास खो देती है और नई पीढी कि लडकियो से भी यही आशा करती है कि वे भी वही झेले जो उन्होने अब तक झेला है तो दूसरी तरफ कुछ स्त्रिया पुरुषो से बराबरी करने की होड मे उनके ही आस्तित्व को अपना लेती है . दोनो तरह कि स्त्रियो ने अपने आस्तित्व को महत्वता देने के लिये कुछ नही किया. कहने का तात्पर्य ये है
कि जिस तरह पुरुषो को खुद के पुरुष होने पर गर्व होता है उससे कही ज्यादा गर्व स्त्रियो को खुद के स्त्री होने पर होना चाहिये . इसलिये अपने हर कार्य को इम्पॉर्टेन्स देना सीखे . ४० वर्षिय सॉफ्टवेयर इन्जीनियर मनोज शर्मा बताते है कि उनकी पत्नी रोमा एक कुशल हाउस वाइफ है और वे उनके कार्य को अपने ऑफिस वर्क से ज्यादा कठिन समझते है क्योकि उन्हे रविवार के साथ साथ त्योहारो मे छुटटी मिलजाती है तो इन्ही दिनो रोमा का छुटटी मिलना तो दूर कि बात है बल्कि उसका काम और बढ जाता है एसे मे आप अन्दाजा लगा सकते है कौन बेहतर है. जब एक लडकी बाइक चलाने कि सोचती हेै तो लोग ये कहते है कि बाइक मत चलाना ,अभी हाथ पैर टूट गये तो. . . . . . वही लडकी जब किचेन मे खाना बनाती है तो कोइ ये क्यो नही कहता कि खाना मत बनाना ,तुम जल गयी तो . … कहने का तात्पर्य है कि लोगो कि मानसिकता ही है कि बाईक ज्यादातर पुरुषो द्वारा चलाइ जाती है इसका मतलब ये एक साहसिक कार्य है वही रसोइघर मे खाना ज्यादातर औरते बनाती है इसका मतलब ये मामूली सा
कार्य है जबकि दोनो कार्यो मे अगर लापरवाही बरती गइ तो एक बडा हादसा हो सकता है .यही कारण है कि बचपन से ही ये बाते लडकियो के मन ये बात भर दी जाती है कि पुरुष मतलब ताकतवार स्त्री मतलब लाचार व कमजोर .यही मानसिकता एक स्त्री को पुरुष से तुलना होने पर गर्व महसूस करवाती है तो दूसरी तरफ पुरुष को स्त्री जाति से तुलना किये जाने पर शर्म | जबकि सत्य तो ये है कि स्त्री अपने आप मे आप मे ही इतनी श्रेष्ठ है कि पुरुष स्वयम उसकी बराबरी नही कर सकते. प्रियन्का चोपडा अभिनीत फिल्म
जय गंगा जल मे खतरो से खेलती व अत्याचारियो को सबक सिखाती हुइ एस.पी. आभा माथुर को ‘सर’ कह कर सम्बोधित
किया जाता है क्या सिर्फ ‘मैडम ‘ पुकारने से उसकी काबिलियत मे कमी आ जाती ? विद्या बालान , जुही चावला जैसी सफल अभिनेत्रियो ने पुरुषो की बराबरी करने की बजाय अपने आस्तित्व मे छिपी खूबियो को बाहर निकालने मे ध्यान देने की सलाह दी है . कुल मिला कर जब आप खुद की पुरुषो से तुलना न करके स्वय् के अंदर छिपी शक्ति को महसूस करेंगी तब आप अपना आस्तित्व पुरुषो से ऊपर पायेंगी और खुद ब खुद लोग आपको महत्व देंगे .सचमुच आप घर मे हो या आफिस मे ,आप खास है क्योकि आप स्त्री है .
2 Replies to “क्योकि आप स्त्री है”
Comments are closed.
बहुत अच्छा!
thank you