अन्ना,युवा और हमारे ‘बुद्धिजीवी’

अन्ना,युवा और हमारे ‘बुद्धिजीवी’
शीर्षक में ज़्यादा कन्फ्यूज़्ड होने की आवश्यकता नही है|
अन्ना जी को जो समर्थन मिला है उसका पहला कारण तो ज़रूर उनका बेदाग चरित्र है,लेकिन एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि भारतीय युवा,जिसको सब लोग राजनीतिक रूप से उदासीन मानते थे,उसने भी भरपूर सहयोग दिया,अन्ना जी ने स्वयं इसे कई बार स्वीकार किया है कि उन्हें इस प्रकार के सहयोग की उम्मीद नहीं थी|
साथ ही उन्होने विभिन्न अवसरों पर यह भी कहा की ये जो युवा पीढ़ी है ये उन्हें ऊर्जा देती है|आशा की नयी किरण देती है|
वहीं दूसरी ओर सारे युवा भी अन्ना को पूरा समर्थन अपनी-अपनी तरह से दे रहें हैं|
तो अब अन्ना जी और युवाओ के बारे में तो समझ आगया|अब युवाओं को भी एक उम्मीद , एक दिशा , एक आशा सी दिखने लगी है,लेकिन यहाँ एक और वर्ग है जिस के बारे मे

जानना आवश्यक है,जो पूरे सम्मान के साथ जीना चाहता है और जी रहा है,ये है हमारा ‘बुद्धिजीवी’ |इसमें मोटे तौर पे वो पढ़े लिखे, अपने कार्यों में व्यस्त लोग आते हैं जिन्हें युवा वर्ग में नहीं रखा जा सकता लेकिन यह वर्ग भी राजनीतिक रूप से एक तरह से ‘उदासीन’ ही रहता है|
समय-समय पर हमारी राजनीतिक पार्टियों ने, वो चाहे कांग्रेसी रहीं हों या गैर-कांग्रेसी,केंद्रीय सरकारें रहीं हों या राज्य सरकारें सभी ने इस ‘बुद्धिजीवी’ का प्रयोग किया और लाभ उठाया उसके बाद किनारा कर लिया|ये एक बार नहीं दो बार नहीं आज़ादी के बाद से लगातार होता आ रहा है| इसी कारण अब हालत ये है कि ये ‘बुद्धिजीवी’ किसी सही व्यक्ति के द्वारा किए जा रहे सही और ईमानदार प्रयास को भी संशय भरी नज़रों से देखता है|
हमें आश्चर्य नहीं होता है जब हम न्यूज़ चैनलों पर,अख़बारों में विभिन्न ‘बुद्धिजीवियों’ के वक्तव्य सुनते और पढ़ते रहते हैं,जिनमें कोई अन्ना जी को किसी राजनीतिक पार्टी का मुखौटा कहता है तो कोई संघ परिवार से जोड़ देता है| कोई अन्ना आरू उनकी टीम को अमेरिकी एजेंट कहता है तो कोई वर्ल्ड बैंक का एजेंट| कोई ‘दलित’ का चश्मे से अन्ना के आंदोलन को देखता है और कहता है अरे!..ये सबका आंदोलन नही है इसमें दलित शामिल नहीं हैं,कोई बोलता है अरे..इसमे मुस्लिम शामिल नहीं हैं|
अरे!…हे बुद्धिजीवी, ज़रा इन संदेह के ‘चश्मों’ को उतार के देखो और पूछो अपने आप से कि क्या ये आंदोलन जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ है उससे दलितों या मुस्लिम भाइयों का या अन्य किसी वर्ग का भला नहीं होगा???
अरे भ्रष्टाचार से तो सभी लोग त्रस्त हैं और सभी इससे एक हद तक निजात पाना चाहते हैं,लेकिन हे बुद्धिजीवी!!!…अगर आप साथ नही दे सकते तो कम से कम एक बार विश्वास तो कर के देखो….. या फिर आप को उन्हीं राजनेताओं और उनकी पार्टियों धोखा देने वाली नीतियाँ और बातें ही समझ में आती हैं???…वैसे इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि जिस तरह से सभी राजनीतिक पार्टियों ने सिर्फ़ सत्ता पाने के लिए न जाने कौन-कौन से मुद्दों को उखाड़ा,कौन-कौन से मुद्दों कों पैदा किया| एक पार्टी ने एक संप्रदाय को साथ मिलाने की कोशिश की तो दूसरी पार्टी ने दूसरे को झुनझुना पकड़ाया| एक ने सताया तो दूसरी ने मलहम का वादा कर के नमक लगा दिया|
अब सोचने वाली बात है जिस ‘बुद्धिजीवी’ को इस प्रकार से न जाने कितनी बार मूर्ख बनाया गया हो वो कैसे किसी सही आंदोलन पर भी विश्वास कर सकता है?..लेकिन हमारी तो एक युवा होने के नाते बस यही अपील है कि हे बुद्धिजीवियों,..जब इतनी बार राजनीतिक पार्टियों पे विश्वास कर के और मूर्ख बन के देख लिया है तो एक बार एक ऐसे व्यक्ति को भी समर्थन दे के देखो जिसकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है जो ईमानदार है,जो सीधा सदा जीवन गुज़ार रहा है,जिसका चरित्र साफ है,नीयत साफ है,इरादे नेक हैं|
अरे…अपने ‘चश्मे’ उतार कर ज़रा साथ आ कर तो देखो…|

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